Wednesday, January 28, 2009

लोकतंत्र


राजस्थानी भाषा के कवि ओम पुरोहित कागद की कविताओं में से एक ॥
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रामलाल
तू गाय जैसा आदमी है
तो घास खा
हम बापडे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएँगे तेरा
देखना
लोकतंत्र में कोई भूखा न रहे

10 comments:

  1. वाह !
    लोकतंत्र को बड़े ही सटीक ढंग से परिभाषित किया है....
    और आज का सच भी यही है....
    लोकतंत्र के मआने ही बदल चुके हैं....
    एक बहोत उम्दा पेशकश के लिए मुबारकबाद . . . .
    ---मुफलिस---

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  2. सुन्दर प्रस्तुतिकरण

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  3. huh...
    good one....
    //देखना
    लोकतंत्र में कोई भूखा न रहे//

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  4. lok tantra par kitna gehra prahaar kiya gaya hai..

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  5. वाह...बहुत करारा व्यंग है....

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  6. बेहतरीन ...... शुक्रिया पढ़वाने के लिए

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  7. solid baat hai.

    http://som-ras.blogspot.com

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  8. खतरनाक..
    नंगा सच कितना डरावना होता है..तभी तो जंगल को भी शहर के कपड़े पहना कर रखते हैं.

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  9. yahi sach hai bhartiy loktantra ka.

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