राजस्थानी भाषा के कवि ओम पुरोहित कागद की कविताओं में से एक ॥
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रामलाल
तू गाय जैसा आदमी है
तो घास खा
हम बापडे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएँगे तेरा
देखना
लोकतंत्र में कोई भूखा न रहे
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रामलाल
तू गाय जैसा आदमी है
तो घास खा
हम बापडे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएँगे तेरा
देखना
लोकतंत्र में कोई भूखा न रहे
वाह !
ReplyDeleteलोकतंत्र को बड़े ही सटीक ढंग से परिभाषित किया है....
और आज का सच भी यही है....
लोकतंत्र के मआने ही बदल चुके हैं....
एक बहोत उम्दा पेशकश के लिए मुबारकबाद . . . .
---मुफलिस---
सुन्दर प्रस्तुतिकरण
ReplyDeletehuh...
ReplyDeletegood one....
//देखना
लोकतंत्र में कोई भूखा न रहे//
lok tantra par kitna gehra prahaar kiya gaya hai..
ReplyDeleteवाह...बहुत करारा व्यंग है....
ReplyDeleteक्या कहूँ। वाह।
ReplyDeleteबेहतरीन ...... शुक्रिया पढ़वाने के लिए
ReplyDeletesolid baat hai.
ReplyDeletehttp://som-ras.blogspot.com
खतरनाक..
ReplyDeleteनंगा सच कितना डरावना होता है..तभी तो जंगल को भी शहर के कपड़े पहना कर रखते हैं.
yahi sach hai bhartiy loktantra ka.
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